Add To collaction

ऊंट के मुंह में जीरा पाउडर


             *2.* ऊंट के मुंह में जीरा...!  


नौकरी ना मिल पाने की वजह से महेश बहुत परेशान था तो राघव उसे शहर घुमाने ले गया। अब आगे 


इलाहाबाद के सभी प्रसिद्ध स्थानों पर घुमते घुमते रात हो चुकी थी और वो दोनों बहुत थके हुए भी थे तो दोनों एक रेस्टोरेंट में खाना खाने चले गया। वहां महेश की नज़र एक लड़की पर पड़ी जो कबसे उन दोनों की तरफ ही देखे जा रही थी। महेश को यह देखकर बहुत गुस्सा आया और वो उठ कर उस लड़की की तरफ चल दिया। राघव ने पलटकर देखा तो उसके चेहरे पर बारह बज गए। इस से पहले कि और रायता फैलता राघव ने महेश का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और उसके कान में धीरे से कुछ बोला तो महेश का गुस्सा ठंडा हो गया। और वो चुपचाप उसी टेबल के पास कुर्सी खींच कर बैठ गया जहां वो लड़की बैठी हुई थी।


"तो आप हैं स्नेहा जी जिन्होंने इसका दिल फेफड़ा किडनी सब चुराया है। वैसे इसने आपके बारे में जितना बताया था, बहुत कम था। आप तो उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत हों। इसने आपको पसंद किया क्यूंकि आप हो ही इतनी खूबसूरत लेकिन आपने इस नालायक को कैसे पसन्द कर लिया यह समझ नहीं आया।" होंठों पर शरारती मुस्कान लिए महेश ने स्नेहा को देखते हुए राघव की तरफ तिरछी नजर डाली तो स्नेहा की हंसी छूट गई लेकिन वहीं राघव का मुंह बन गया और वो उसे चिढ़ कर घूरने लगा पर उसकी इस हरकत से महेश पर रत्ती भर भी प्रभाव नहीं पड़ा।


"आप बहुत अच्छा मज़ाक करते हैं महेश जी लेकिन राघव इतने भी नालायक नहीं हैं। हां थोड़ा बहुत तो हैं लेकिन उतना नहीं जितना आप बता रहे हो।" स्नेहा ने भी महेश को उसी तरह जवाब दिया तो महेश को उसकी यह बात बहुत अच्छी लगी।


अचानक महेश को याद आया कि राघव उसे घूर कर देख रहा था तो उसने अपनी कही बातों पर ध्यान दिया और उसे पता चला कि स्नेहा से बात करते हुए उसने राघव के दिल की बात अनजाने में ही स्नेहा के सामने बोल दी। उसने दांतों तले जीभ दबाते हुए बेबस नजरों से राघव की तरफ देखा और हल्के से उसके थोड़ा पास हो कर माफ़ी मांगी।


"यह सब छोड़िए महेश जी, मेरी नज़र में एक नौकरी तो है लेकिन उसमें सैलेरी बहुत कम है। मेरे दोस्त को एक कैफे के लिए रिसेप्शनिस्ट चाहिए। लेकिन वो कैफ़े थोड़ा छोटा है तो अगर आप इस काम को करने के लिए तैयार हैं तो मैं उससे बात कर लेती हूं। जानती हूं कि यह नौकरी आपके लिए ऊंट के मुंह में जीरे  के समान है लेकिन कुछ ना करना से अच्छा यही कर लीजिए।" स्नेहा ने एक छोटी सी राह दिखाते हुए कहा तो महेश ने भी सोचा कि यही सही रहेगा तो उसने भी सहमति जता दी। स्नेहा ने तुरंत अपने दोस्त साहिल को फोन किया और महेश के लिए बात की। साहिल ने भी तुरंत हां कह दी और इस तरह महेश का इलाहाबाद में अपनी पहचान बनाने का सफ़र शुरू हो गया और महेश की मुंहफट जुबान की वजह से राघव और स्नेहा के रिश्ता भी।

   27
5 Comments

अदिति झा

07-Feb-2023 11:49 PM

👌👍🏼

Reply

Saroj Verma

07-Feb-2023 01:25 PM

बहुत बढ़िया,👌👌👌👌

Reply